मानव शरीर में जिस प्रकार से एक ही प्रकार के रक्त समूह के संचार से शरीर स्वस्थ व पुष्ट रहता है, ठीक उसी प्रकार से किसी भी राष्ट्र के स्वतन्त्र स्वरूप के लिए एक राष्ट्रभाषा आवश्यक है।
आज देश की सबसे बड़ी समस्या है राष्ट्रीय एकता। राष्ट्रीय एकता के लिजए राजनीतिक, धार्मिक साम्प्रदायिक तत्वा भाषायी एकता का होना जरूरी है। तो आइये, हम देखतें है कि क्या भारतवर्ष की भाषा, भारतवर्ष को राष्ट्रीय एकता के सूत्र में बाँध सकती है?
सन् 1950 मंे पंण्डित जवाहर लाल नेहरू ने भी कहा था, ''प्रान्तीय भाषाओं के अधिकार क्षेत्रों की सीमाओं का उल्लघंन किए बिना हमारे लिए यह आवश्यक है अखिन भारतीय व्यवहार की एक भाषा हो। करोड़ो लोगों को एक नितांत विदेशी भाषा से शिक्षित नहीं किया जा सकता ।'' जाहिर है उनका इशारा हिन्दी की ओर था। इसलिए उन्होंने अंग्रेजी को संविधान से बाहर ही रखा।
एक आयरिश कवि टौमस ने कहा है- ''कोई भी राष्ट्र मातृ-भाषा का परित्याग करके राष्ट्र नहीं कहला सकता। मातृ भाषा की रक्षा सीमाओं की रक्षा से भी ज्यादा जरूरी है।'' साहित्य समाज का दर्पण है तथा भाषा साहित्य सृजन का मूलभूत साधना। इसके माध्यम से व्यक्ति से व्यक्ति अपनी अन्तर्मुखी अनुमतियों तथा योग्ताओं को व्यक्त करता है। समय के साथ-साथ भाषा का महत्व तथा उपादेयता बढ़ती जा रही है। साहित्य, विज्ञान तथा अध्यात्म को विदेशी भाषा में अभिव्यक्त करने की बजाए देशी भाषा में अभिव्यक्त करना स्वाभाविक,सरल तथा उचित है।
पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने एक सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए कहा था। ''हिन्दी ही एकमात्र भाषा है, जो सारे राष्ट्र को एक सूत्र में पिरोती है। यदि हिन्दी कमजोर हुई तो देश कमजोर होगा और यदि हिन्दी मजबूत हुई तो देश की एकता मजबूत होगी।''
आशा की जानी चाहिए कि केन्द्र सरकार, राज्य सरकार, विश्वविद्यालय अनुदान, आयोग, विश्वविद्यालय प्रशासन, स्वयंसेवी संस्थाओं तथा इन सबसे बढ़कर जनता जनदिन के सहयोग से हिन्दी राष्ट्रभाषा के रूप में प्रतिष्ठित होगी।
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