हमारे एक परिचित खाने के निमन्त्रण में, लगातार इक्कीस वर्षों से प्रथम आ रहे हैं।
पच्चीस आदमियों का खाना अकेले ही,
बड़े मजे से खा रहे हैं।
हमने एक दिन उनसे पूछा,
मित्र आश्चर्य है मँहगाई के इस दौर में भी,
तुम इतना खा रहे हो।
हमारी बात सुनकर वे कुछ उदास हो गए।
पहले कुछ दूर खड़े थे, मगर अब पास हो गए।
बोले- अरे हम कहाँ।
कुछ हमसे भी अधिक खा रहे हैं।
और इतना खाकर भी मजे से पचा रहे हैं।
विधायक विधान खा रहे हैं,
सांसद संविधान खा रहे हैं।
नेता ईमान खा रहे हैं,
पुजारी भगवान खा रहे हैं।
पण्डित पुराण खा रहे हंै,
मुल्ला कुरान खा रहे हैं।
और कुछ ऐसे भी लोग हैं ,
जो समूचा हिन्दुस्तान खा रहे हैं।
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