वो मेरे चंद गुनाहों की किताब रखता है
नौसिखिया है, इश्क़ में हिसाब रखता है
नींद आएगी नहीं उसे किसी भी सूरत में
आँखों में बे - हिसाब मेरे ख्वाब रखता है
कहता है कि मेरे निशाँ तक मिटा देगा
और आँगन में मुझे माहताब* रखता है
बुझा कर रौशनी पूरे घर में सूना बैठा है
और पलकों में छुपाके मेरे आब रखता है
जिन सवालों से मुझे घेरने की कोशिशें हुईं
अपने होंठों पर उनके खूब जवाब रखता है
*आब-चमक
*माहताब-चाँद
सलिल सरोज
कार्यकारी अधिकारी
लोक सभा सचिवालय
संसद भवन
नई दिल्ली
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