हर लक्ष्य को मन , मस्तिष्क के साथ तैयारी करके पाना संभव होता है ।
किसी भी लक्ष्य को प्राप्त
करने के लिए साधक को तन ओर मन दोनों से सामान रूप से तैयार होना चाहिए
किसी भी रचना का भाव पहले मन में आता है मन उसको अपने हिसाब से संवार कर मस्तिष्क को सौंप देता है फिर उस कार्य के लिए मस्तिष्क सारी योजना बनाता है जब साधक मन और मानसिक दोनों रूप से तैयार हो जाता है तो शरीर में उस कार्य को करने के लिए ऊर्जा का निर्माण होने लगता है,उस हेतु शक्ति का संचार होने लगता है फिर मन और मस्तिष्क दोनों मिलकर शरीर में निर्मित ऊर्जा शक्ति से अपने उस कार्य करवाने लग जाते है,
एक छात्र अपने विषय के अध्यन हेतु जब मन से तैयार होता है तो मस्तिष्क भी उसकी सहायता करता है फिर वो बिना थके अपनी पूरी क्षमता से हर उस प्रश्न को हल कर देता है जो उसके कोर्स का होता है,
इसी तरह किसी भी क्षेत्र का कोई भी साधक हो अपने कार्य को उच्चतम परिणाम पर ले जा सकता है
कोई कलाकार है वो अपने हर बार के प्रस्तुतीकरण पर पूरा ध्यान लगता है तो लगातार सफल होता है और अगर वो यह सोचे के पिछले अनेकों बार मिली सफलता से में सिद्ध हो गया हूं तो शायद उसकी कार्य शक्ति प्रभावित होगी
ओर परिणाम पूर्व की भांति नहीं हो,
ऐसे ही एक रचनाकार की रचना भी उसी तरह से अपने आप को दर्शाती है
किसी मकान के बनाने वाले को देखते हैं तो वो अपने कार्य को अंजाम देने मे लगा है और परिणाम मन लायक हेतु वो बार बार एक ही कार्य को करने मे लगा है और वो अपने कार्य को पुरा अच्छा कर ही रुकता है
वो अपने कार्य को अंजाम देने के लिए मन में एक तैयारी के साथ लगा है उसका साथ देने के लिए मस्तिष्क भी कार्य करने लगता है शरीर भी कार्य करने लगता है तभी परिणाम मन लायक मिलता है ,
कहने का तात्पर्य यह है कि
कोई भी कार्य करने के लिए प्रेरित ओर परिणाम मन लायक हो तो समर्पण होना जरूरी है
हर कोई अपने आप को अपने-अपने तरीके से निखार सकता है बस शर्त यही है के आप अपने हिसाब से नहीं बल्कि उस कार्य को करने वाली सारी नीति विधि को पूर्ण मन से पालन कर उस पर गहराई से मनन करने के बाद मस्तिष्क में उस के लिए पुरी तरह से तैयारी होना उसके बाद उस योजना पर कार्य करना लाभकारी साबित होता है
हर कार्य के लिए कोई ना कोई तैयारी जरूर करनी होती है |
आजकल हम देखते है के अनेकों क्षेत्रों में प्रतिस्पर्धा लगी हुई है हर कोई प्रथम आना चाहता है,प्रथम रहना चाहता है,प्रथम होना चाहता है, लेकिन वह उस कार्य के लिए अपने आप को कितना तेय्यार करता है या कितना उसके प्रति समर्पित है इसका आंकलन नहीं के बराबर होता है बिना किसी तैयारी के तन और मन को बिना तैयार किए किसी को भी किसी भी लक्ष्य को पाना संभव नहीं होता है।
लेखक एवम कवि राजेश शर्मा, उज्जैन
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