कर्वी से प्रतिदिन मालगाड़ी के टैंकर से खाने वाला तेल देश के कई राज्यों तथा विदेश जाता था तत्कालीन देश के सबसे बड़ी उद्योगपति सेठ जुग्गीलाल कमलापति ने उत्तर प्रदेश का पहला आधुनिक तेल प्लांट कर्वी में स्थापित किया था इस तेल मिल में सैकड़ों स्थानीय मजदूर काम करते थे अंग्रेज भी नौकर की हैसियत से काम करते थे। चित्रकूट बांदा महोबा हमीरपुर के किसानों द्वारा बड़ी संख्या में तेल उत्पादन के लिए अलसी सरसों अपने खेतों में उत्पादित कर इस मिल को दिया जाता था।
कर्वी शहर में हजारों मीटर जमीन में इस मिल का फैलाव था जिसे आज भी खंडार के रूप में कर्वी के बलदाऊ गंज में देख सकते हैं इस आधुनिक तेल मिल में उस जमाने में सरसों अलसी के तेल के साथ नीम की निमोली तथा कपास के बीज से निकाला जाता था खुरहंड अतर्रा बांदा नरैनी के किसानों द्वारा बड़ी संख्या में कच्चा माल तैयार किया जाता था जनप्रतिनिधियों की उदासीनता के कारण यह मिल प्लांट 1970 के करीब बंद हो गया था तेल मिल की जमीन में प्लाटिंग कर मकान बनाए जा रहे हैं।
इस तेल मिल प्लांट को देखने के लिए भूदान आंदोलन के संस्थापक आचार्य विनोबा भावे पद्म विभूषण दीदी देवला देशपांडे तथा उनके साथियों ने भूदान पद यात्रा के दौरान देखा था और सराहना की थी और कहा था कि बांदा चित्रकूट के किसानों की वजह से भारत को शुद्ध तेल मिल रहा है खाने के लिए। हम सबको यह सुनकर गर्व होगा कि किसानों की मेहनत की वजह से चित्रकूट मंडल तेल उत्पादन की उत्तर प्रदेश की भारी मंडी थी एशियन पेंट वर्जन नैरोलैक जैसी कंपनियां हमारे तेल पर निर्भर थी देश के सबसे बड़े तत्कालीन उद्योगपति उद्योग नगरी कानपुर के जनक शेठ जुग्गीलाल कमलापति ने चित्रकूट में सबसे पहले आधुनिक आयल मिल प्लांट डाला था। और इस मिल तक रेल लाइन गई थी। देश के जाने-माने रेल लाइन व रेल पुल के बनाने वाले ठेकेदार प्रागी लाल उपाध्याय ने रेल लाइन मिल तक डाली थी जो गिरवां के निवासी थे। बांदा जनपद के विभिन्न कस्बों में 5 वर्ष पूर्व तक 200 से अधिक स्पेलर तेल निकालने का काम करते थे। एक स्पेलर 1 दिन में अट्ठारह सौ लीटर 1800ली0 तेल निकालता था प्रतिदिन नागपुर इंदौर कानपुर 1 टैंक तेल बांदा शहर से जाता था एक स्पेलर में 6 छह व्यक्ति काम करते थे तेल व्यवसाय में 2500 ढाई हजार मजदूर नियमित रूप से रोजगार पाते थे यह व्यवसाय किसानों पर निर्भर था प्राकृतिक आपदा सरकार द्वारा सहयोग न मिलने के कारण किसानों ने अलसी सरसों बोना बंद कर दिया और यह व्यवसाय भी बांदा से पलायन कर गया तत्कालीन जनप्रतिनिधियों ने इस उद्योग को बचाने के लिए कोई प्रयास नहीं किया। सर्वोदय कार्यकर्ता होने के नाते युवा पीढ़ी को जानकारी देना उचित समझता हूं अपने पुराने वैभव को कैसे बचाया जाए आप हम सब सोचे। चित्रकूट मंडल का तेल खाने की दृष्टि से सबसे उपयुक्त था क्योंकि यहां के किसान अपने खाद्यान्न उत्पादन में केमिकल का उपयोग नहीं करते थे शुद्ध तेल होता था दुनिया के बाजार में इस तेल की मांग थी। पेंट में अभी इस तेल का इस्तेमाल होता था इस विषय पर बहुत कुछ लिखा जाना था लेकिन कम से कम जानकारी दे पा रहा हूं क्षमा करें। किसान और किसानी को बचा कर पुनः यह रोजगार शुरू हो हम सब विचार करें जय जगत।
उमाकांत पाण्डेय
बांदा
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