Tuesday, October 29, 2019

कौन माँ

    माँ संक्षिप्त होते हुए भी कितना व्यापक और सारगर्भित शब्द है। इसीलिये तो माँ को जन्मभूमि के समान तथा स्वर्ग से महान बताया गया है। वस्तुतः माँ का स्थान जन्मभूमि से भी बढ़कर है क्योंकि वही तो मानव सृष्टि का मूल स्त्रोत है। वैदिक काल से ही माँ का सर्वोच्च स्थान रहा। सत्य कहा जाये तो माँ देवी के रूप में धरा पर अवतरित होकर सृष्टि में संचालन का गुरूतर भारत वहन करके अपने विराट स्वरूप का दर्शन कराती है।
 जन्म से लेकर सात वर्षो। तक बालक पूर्णतया माँ पर आश्रित होता है। इसी बीच माँ अपने बालक के भविष्य का निर्माण करती है। इसी बीच बालक की शिक्षा की नींव मजबूत होती है। किसी ने सत्य ही कहा है-
 ''यदि बालक की शिक्षा की नींव सुदृढ़ व सुन्दर होगी तो बालक उन्नति करेगा'' बालक अस्थिर चर्ममय वह आकृति है जिसे माॅ का स्नेह, त्याग, और तपस्या, उसे शारीरिक विकास प्रदान करती है। और पिता का अनुशासन, नैतिकता तथा गंगा का अमृत सिंचन करता है जिससे बालक संसार में पुष्पित तथा पल्लवित होता है। ''शिशु सुन्दर प्रभु का रूप है माँ कोमलता की खान पिता ज्ञान गंगा भरे, बालक बने महान्''।।


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