Monday, October 21, 2019

ज्योतिष एवं रोग

समीर कुमार श्रीवास्तव


ईश्वर करें:
''मेरी नासिका पुरों में श्वास,
कण्ठ में वाणी, आंखों में दृष्टि,
कानों में स्वर एवं शीश पर केंश रहें
मेरे दाँत कभी न टूटें न कलुषित हों,
मेरी भुजाओं में बल, जंघाओं में शक्ति, एवं पैरांे में गति रहे।
 मेरे कदम सदैव मजबूती से बढ़े। मेरे सर्वांग सुचारू रूप से काम करते रहें तथा मेरी आत्मा सदैव अविजित रहे।'' 
 आधुनिक जीवन की आपाधापी में यद्यपि विकसित चिकित्सा विज्ञान की कृपा से आम इंसान की आयु में बढ़ोत्तरी हुई है, परन्तु सेहत का ग्राफ पहले युग के मुकाबले अधिक नीचे आ गया है। 25 से 40 वर्ष की आयु तक पहुंचते-पहुंचते आज के नवयुवक असामान्य रोगों के शिकार हो जाते हैं। जंक फूड, तनाव ग्रस्त स्थितियां एवं विपरीत स्थितियों में संघर्ष करने के कारण शरीर की जीवंतता बड़ी जल्दी क्षीण होने लगती है। तरह-तरह की चिकित्सा पद्धति की उपलब्धता के बावजूद 'तीर या तुक्का' की तरकीब लगाई जाती है कि प्राकृतिक न सही तो होम्योपैथिक और होम्योपैथिक न सही तो आयुर्वेदिक और कुछ नहीं तो एलोपैथिक तो है ही अन्तिम उपाय। इसी कारण आज के माहौल में ज्योतिष संबंधी भेषज ज्ञान की उपयोगिता और प्रासंगिकता बढ़ती जा रही है। मानव शरीर पूर्ण रूप से 12 राशियों, 27 नक्षत्रों तथा 9 ग्रहों से प्रभावित होता है। जिस समय जीव माता के गर्भ में होता है उस समय ग्रहों से आने वाली किरणें माता के गर्भ को प्रभावित करती है।
 आकाश में जो ग्रह बलवान होकर भ्रमण कर रहा होता है और उस समय उस ग्रह से सम्बन्धित अवयव का निर्माण हो रहा होता है तो वह अवयव मजबूत हो जाता है और जब उस ग्रह की दशा चलती है तो जातक को उस अंग से सम्बन्धित कष्ट होता है।
 कुछ लोगों का तर्क है कि इन सुदूर स्थित ग्रहों का प्रभाव पृथ्वी पर पड़ना केवल एक काल्पनिक सोच है और तथ्य से परे है। परन्तु यह तो विज्ञान भी मानता है कि चन्द्रमा के प्रभाव से ही सागर में ज्वार-भाटा आता है। अतः यह स्पष्ट है कि द्रव पर तो यह प्रभाव कारगर होता ही है, तो फिर मानव शरीर पर क्यों नहीं होगा जो 80 प्रतिशत द्रव पदार्थों से ही बना है।
 शरीर च नवच्छिद्रं व्याधिग्रस्तं कलेवरम्।
 औषधं जाहनवीतोयं वैद्यो नारायणो हरिः।।
 अर्थात् ये शरीर नौ छिद्रों से युक्त और व्याधिग्रस्त है, इसके लिए गंगाजल ही औषध और भगवान नारायण ही वैद्य है।


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