एक संत हर सुबह घर से निकलने के पहले आइने के सामने खड़े होकर खुद को देर तक निहारते रहते थे। एक दिन उनके शिष्य ने उन्हें ऐसा करते देखा। तो उसके चेहरे पर मुस्कान झलक पड़ी। वे समझ गये और शिष्य से बोले, ''तुम जरूर ये सोचकर मुस्कुरा रहे हो कि ये कुरूप व्यक्ति आइने में खुद को इतने ध्यान से क्यों देख रहा है? पकड़े जाने से शिष्य थोड़ा शर्मा गया। वह माफी मांगने वाला ही था कि इसके पहले संत ने बताना शुरू कर दिया। आइने में हर दिन मैं सबसे पहले अपनी कुरूपता को देखता हूँ। ताकि उसके प्रति सजग हो सकूँ। इससे मुझे ऐसा जीवन जीने की प्रेरणा मिलती है, जिससे मेरे सद्गुण इतने निखरें कि वे मेरी बदसूरती पर भारी पड़ जाएँ। शिष्य बोला ''तो क्या सुन्दर व्यक्ति को आइने में अपनी छवि नहीं निहारनी चाहिए?'' संत ने कहा - ''बिल्कुल निहारनी चाहिए, लेकिन वह स्वयं को आइने में देखे तो यह अनुभव करे कि उनके गुण भी उतने ही सुंदर हों, जितना कि उनका शरीर है।
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