''बूंद-बूंद से भरती है गागर
स्नेह और बाती से दिया जलता है
खून को पसीनें में बदलो
मेहनत से नसीब बदलता है।''
परिश्रम के पक्ष को प्रतिपादित करती ये प्रेरक पंक्तियां विकासशील समाज के लिए साहित्य का अनुपम उपहार हैं। विधाता की अनुपम सृष्टि-मनुष्य उर्वर मस्तिष्क वाला मनुष्य इन्हीं मस्तिष्कों से साहित्य का सृजन करता है। साहित्य और साहित्यकार की रचना संसार को सुनना समझना और देखना एक अत्यन्त सुखद अनुभव है।
इसी अनुभव का एहसास साहित्य को समाज से जोड़ता है और साहित्य में समाज प्रतिबिम्बित होता है। विद्यार्थी वर्ग अत्यन्त ही कल्पनाशील एवं भावुक हृदय वाला होता है। हर छोटी बड़ी घटना उनके मन पर अपनी अमिट छाप छोड़ती है। हमने उनकी इसी शक्ति को प्रोत्साहित कर उसे निखरने के पूर्व अवसर प्रदान किए हैं।
साहित्य सामाजिक अभिव्यक्ति का एक स्वरूप है। इस अभिव्यक्ति का सुख सब सुखों से बड़ा होता है। क्योंकि यह पाकर नहीं वरन् देकर मिलता है। ये अभिव्यक्तियाँ कभी आपकी थकान मिटायेंगी, कभी मनोरंजन करेगी, कभी नीरस मन को सरस करेगी, कभी मानसिक पीड़ा के लिए मरहम बनेगी, तो कभी जीवन के झुलसे मौसम में बसंती बयार बनेगी।
अंत में मेरा यही कहना है-
आगे बढ़ना सृष्टि का नियम है
पीछे वे देखते हैं
जिनके आगे राह नहीं होती है
स्थिर वे रहते हैं
जो चेतना शून्य होते हैं।
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