आर्कटिक यानि उत्तरी ध्रुव जिसे भौगोलिक भाषा में 900 उत्तरी अक्षांश, जो बिन्दु मात्र रह जाता है, के नाम से जाना जाता है। अगर उसे हम पृथ्वी की छत कहे तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। यहां विशाल बर्फ के अतिरिक्त आर्कटिक सागर भी शामिल है। यह सागर कई देशों जैसे- कनाडा, ग्रीन लैण्ड, रूस, अमेरिका, आइसलैण्ड, नार्वे, स्वीडन और फिनलैण्ड की जमीनों को छूता हैै।
उत्तरी धु्रव पर पहुंचने का सबसे प्रथम सफल प्रयास राबर्ट पियरे ने किया। इसके पहले भी कई प्रयास हुए थे। लेकिन वे सफल नहीं हुए। यह व्यक्ति 1908 में इन अन्तरीप तक रूजवेल्ट नामक जहाज में गया। वहां से वह अपने दल के साथ पैदल ही आगे बढ़ा। बारह स्लेज गाड़ियों में उसका सामान लदा था जिसे 133 कुत्ते ;रेण्डियरद्ध खींच रहे थे।
6 अप्रैल 1909 को पियरे अपने साथी मैथ्यू हैनसन और चार एस्किमों के साथ पृथ्वी की उत्तरी-चोटी पर पहुंचा। आर्कटिक क्षेत्र में बर्फ का विशाल सागर है जिसे अंध महासागर का उत्तरी छोर भी कहा जाता है इस क्षेत्र में वनस्पति कम मिलती है फिर भी लाइकेन, मांस तथा प्लैक्टन नामक पौधे पाये जाते हैं। इस जमीन पर धु्रवीय भालू और कुछ लोग भी रहते हैं। इस अनोखे भौगोलिक वातावरण के कारण यहां रहने वाले लोगों ने खुद को हालात के अनुसार ढाल लिया है यहां पर सर्दियां भीषण बर्फीली और अंधियारी होती है। गर्मियों में सूर्य 24 घण्टे निकला रहता है। यहां का मौसम सर्दियों में शून्य से 400ब् तक नीचे जा पहुंचता है। यहां का सबसे कम तापमान शून्य से 680ब् से नीचे तक रिकार्ड किया गया है।
यहां गर्मियों में भी ठण्ड बनी रहती है। ऐसा समुद्री हलचल के कारण होता है। कई तरह के पदार्थ भी इस क्षेत्र में मिलते हैं, जैसे-तेल, गैस, खनिज आदि। कई किस्म की जैव-विविधता, यहां प्राड्डतिक तौर पर संरक्षित हैं। कुछ समय से यह क्षेत्र पर्यटन उद्योग की दृष्टि में आया है। यहां विश्व के जल क्षेत्र का 1/5 प्रतिशत जल स्त्रोत है। इन्टरनेशनल आर्कटिक साईन्स कमेटी ने गत दस वर्षों में इस जटिल क्षेत्र के संदर्भ में कई नई जानकारियां जुटाई हैं तथा प्रयास भी कर रही हैं।
इस क्षेत्र का सबसे रोचक दृश्य मिडनाईंट-सन और पोलरनाईट है।
No comments:
Post a Comment