बांदा के इस गांव में पान की आढत लगती थी इस गांव का पान देश के कई महानगरों के साथ नेपाल, बांग्लादेश, पाकिस्तान सहित कई देशों में बेचा जाता था। इस गांव में सरकार भी पान पैदा कर बेचती थी। महाभारत काल से पुराना है।यह गांव केवल पान के किसानों का था जो प्राकृतिक आपदा, प्रशासनिक व तत्कालीन जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा के कारण पूरी तरह पान व्यवसाय समाप्त हो गया है। पान के किसान बकरी, भैंस चरा, सड़क पर पूजा सामग्री बेचकर अपना जीवन काट रहे हैं किसी समय 5000 की आबादी से अधिक के गांव में वर्तमान में 600 व्यक्ति बचे हैं। बाकी पान के किसान महानगरों में अपने बच्चो वा बड़ों के उधर पोषण के लिए पलायन कर गए। यह गांव बराई मानपुर जो ब्लाक महुआ तहसील नरैनी जिला बांदा के अंतर्गत आता है और इस गांव में केवल चैरसिया जिन्हें पूर्व में बरई कहा जाता था। उनका एक मात्र गांव इतिहास कालीन यह है। यहां के चैरसिया उत्तर प्रदेश मे मध्य प्रदेश मे वा भारत के कई राज्यों में बस गए हैं स्वरोजगार के कारण यह गांव इतिहास में राजा नल की पत्नी दमयंती के मौसा चेदि राज्य के राजा थे उनकी राजधानी सूक्तिमती नगरी थी।राजा नल राम के पूर्वज ऋतु पर्ण के समकालीन थे।उनके बाद राम यहाँ आए।महाभारतकालीन राजा शिशुपाल यहाँ के राजा थे।जो महाभारत काल से पुराना है सुक्त मती नगरी थी। मुगलकालीन सल्तनत का राज्य यही से संचालित होता था। कालिंजर और महोबा से शायद यह नगर पुराना है। ऐसा पुरातत्व खोजकर्ता माननीय श्री विजय कुमार जी अपर पुलिस महानिदेशक उत्तर प्रदेश बताते हैं केन के किनारे जल मार्ग से बड़ा व्यापारिक केंद्र भी सेवडा रहा है। आज मात्र खंडहर बचे जिन्हें देखा जा सकता है राम सोनू चैरसिया बताते हैं कि उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पान पौधशाला नर्सरी खोली गई थी। जिसमें इसमें प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से सैकड़ों कर्मचारी पान के साथ काम करते थे और इस पान की नर्सरी से प्रतिदिन पान बिकने के लिए बाहर जाता था। प्रशासनिक उपेक्षा के कारण पिछले 15 वर्ष से यह पान की नर्सरी पूरी तरह से बंद है उजड़ गई है जो कई एकड़ में थी केवल लोहे के खंभे और बोर्ड लगा है। महावीर चैरसिया बताते हैं कि इस गांव में 100 से अधिक कुआं है 500 परिवार केवल पान की खेती करता था। पान की मंडी थी हमारे गांव में लखनऊ, कानपुर, बरेली, बेंगलुरु, दिल्ली, कोलकाता, मुंबई के व्यापारी आढ़तियों के माध्यम से गांव से पान खरीदते थे हमारे गांव में उच्च क्वालिटी का देसी पान पैदा होता था। जो हमारी कई सौ वर्ष पुरानी पीढ़ी ने हमें पान की बेल व जड़ें हमें दी थी। मुनीलाल चैरसिया बताते हैं कि मैं 200 देसी पान 2 में बेचता था 20 वर्ष पहले तक प्रतिवर्ष 20000 का पान बेच लेता था पूरा धंधा चैपट हो गया युवा किसान सोनू चैरसिया बताते हैं कि 100 बरेजा मेरे सामने लगे थे जिसमें लाखों पान रोज तोड़ा जाता।
कुछ पान किसान अपने बरेजे में सब्जी पैदा कर रहे हैं इन किसानों के भाई भतीजे चाचा प्रत्येक परिवार से अपने जीवन यापन के लिए पान व्यवसाय बंद हो जाने से पलायन कर गया है। इस गांव से किसानों द्वारा पैदा किया गया पान ट्रक व रेल के माध्यम से गलले की भांति बाहर बिक्री के लिए जाता था करोड़ों रुपए का व्यापार यहां के पान के किसान करते थे। हजारों लोगों को रोजगार मिलता था जिस गांव में स्वयं सरकार पान पैदा कर व्यापार करने लगे खुद समझिए कितना संपन्न गांव था। यहां के बुजुर्ग 5 किसान कहते हैं कि यदि सरकार हमें सहयोग करें तो पुनः एक बार हम पान की खेती करके दिखाना चाहते हैं जो हमें सपना लग रही है। जिसे खाकर सैकड़ों लड़ाई लड़ी गई उस पान के बीड़ा को जो वीरों को थाल में दिया जाता था। उसे बचाने के लिए संकट है पान एक औषधि है देसी पान वह पान है जो जमीन में गिर जाए और टुकड़े टुकड़े हो जाए पान का पत्ता पान की जड़ दोनों औषधि है। इस गांव के 3000 परिवार ने पान की खेती छोड़ दी है सरकार आम जनप्रतिनिधियों से अनुरोध है कि हमारी हजारों बरस पुरानी पान की खेती फिर शुरू कराने की योजना बनाएं। सर्वोदय कार्यकर्ता होने के नाते मौके पर जाकर जो देखा किसानों ने चर्चा की बताया वह सब आपकी सेवा में।
इस व्यवसाय को खत्म करने के लिए मौसम की मार के साथ सरकारी नीतियां जिम्मेदार है।बीमा का लाभ पान के किसानों को नहीं मिलता इसे उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग में सम्मिलित किया जाना चाहिए पान के किसानों को बॉस,बल्ली तार, पॉलीथिन, पानी पाइपलाइन किसान क्रेडिट कार्ड की भांति, पान किसान क्रेडिट कार्ड बनना चाहिए। एकमुश्त अनुदान पानी के लिए ट्यूबवेल, पान अनुसंधान केंद्र के अधिकारियों कर्मचारियों को लगातार इन पान किसानों के संपर्क में रहना चाहिए तभी हम शाम के किसानों को खड़ा कर सकते हैं।
No comments:
Post a Comment