कान्हा पूछ रहे है राधा से,बताओ मुरली कहाँ छुपाई।
कान्हा को परेशान देखकर,राधा मन ही मन मुस्काई।
कान्हा तुम मुझसे मिलने पल दो पल ही तो आते हो।
यहाँ आकर भी मुरली सौतन को छोड़ ना पाते हो।।
अब ना मिलेगी मुरली तुमको,अब ये मुझको ना भाई है।
इसके वादन पर सारी गोपियां,तुमको पाने को हर पल बोराई है।
कसम तुम्हे है कान्हा मेरी,अब ये मुरली कभी तुम ना बजाओगे।
मुझसे जब भी मिलने आओ तब मुरली को मुँह ना लगाओगे।।
सुनकर बाते राधा की कान्हा तब राधा को समझाने लगे।
प्रेम मुझे है तुमसे प्रिय,मेरी मुरली को तुमसे कोई बैर नही,
प्रियवर तुम्हे ही बुलाने को ही मैं धुन मुरली की बजाता हूँ।
तुम्हारे देर से आने के कारण मैं खुद धुन में खो जाता हूँ।।
कान्हा की सब बाते सुनकर राधा जी का मन हर्षाया है।
कान्हा की मुरली लौटाकर फिर उनको गले से लगाया है।।
नीरज त्यागी
ग़ाज़ियाबाद ( उत्तर प्रदेश ).
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