मौत ने भी अपने रास्ते बदल डाले,
मैं जिधर चला उसने कदम वहाँ डाले।
जब - जब लगा मेरे जख्म भरने लगे,
पुराने वक्त की यादों ने फिर खुरच डाले।
मैं बहुत परेशान था पैरो के छालों से,
मंजिल ने फिर भी रास्ते बदल डाले।
रौशनी झरोखों से भी आ जाती मगर,
वक्त की हवा ने उम्मीद के दिए बुझा डाले।
वक्त के हाथों में सब कठपुतली हैं,
उसके धागों के आगे लगते सब नाचने गाने,
मैं मंजर बदलने की आश में चलता रहा।
साल दर साल फिर भी बढ़ते रहे राह के जाले।।
धुन्ध दुःखो की इस कदर जीवन पर बढ़ी,
खुद ही छूटते चले गए सभी साथ देने वाले,
एक जगह रुककर कभी जीना नहीं शीखा था।
मजबूरियों ने एक ही जगह पर कदम बांध डाले,
नीरज त्यागी
ग़ाज़ियाबाद ( उत्तर प्रदेश ).
मोबाइल 09582488698
65/5 लाल क्वार्टर राणा प्रताप स्कूल के सामने ग़ाज़ियाबाद उत्तर प्रदेश 201001
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