नई दिल्ली, 29 मई (इंडिया साइंस वायर): पुरुषों में हीमोग्लोबिन का स्तर 13.5 और महिलाओं के मामले में
12 से कम होने पर शरीर में रक्त कमी की स्थिति मानी जाती है। जबकि हीमोग्लोबिन का स्तर 07 से कम हो
तो गंभीर एनीमिया का मामला बनता है। सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता से जुड़ा यह मामला भारत के लिए
चुनौतीपूर्ण है क्योंकि गंभीर रूप से एनीमिया के शिकार दुनिया के एक-चौथाई और दक्षिण एशिया के 75
प्रतिशत लोग यहीं पर रहते हैं।
एनीमिया उन्मूलन एक चुनौती है, पर हेल्थ मैनेजमेंट इन्फॉर्मेशन सिस्टम ऑफ इंडिया के आंकड़ों पर आधारित
एक नए अध्ययन से पता चला है कि पिछले करीब एक दशक में भारत में एनीमिया के गंभीर मामलों में 7.8
प्रतिशत की गिरावट हुई है। वर्ष 2008-09 में गंभीर एनीमिया के 11.3 प्रतिशत मामलों की तुलना में वर्ष
2017-18 में इसके 3.29 प्रतिशत मामले सामने आए हैं।
2010-11 और 2017-18 के दौरान विभिन्र राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में एनीमिया की स्थिति
विभिन्न राज्यों में भी गंभीर एनीमिया के मामलों में विविधता देखने को मिलती है। केरल, नागालैंड, हिमाचल
प्रदेश और गोवा में गंभीर एनीमिया के सिर्फ दो प्रतिशत मामले देखे गए हैं। बिहार में पिछले दस वर्षों के
अंतराल में गंभीर एनीमिया के मामले 10.6 प्रतिशत से कम होकर 3.1 प्रतिशत पर पहुंच गए। इसी तरह,
हरियाणा में भी यह आंकड़ा 12.3 प्रतिशत से गिरकर 4.9 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच गया।
डॉ. कौस्तुभ बोरा
इस अध्ययन में पता चला है कि गंभीर एनीमिया का स्तर आर्थिक रूप से बेहतर राज्यों, जैसे- तेलांगना (8-
10%) और आंध्र प्रदेश में (6-8%) अधिक पाया गया है। शोधकर्ताओं का कहना है कि एनीमिया के लिए
जिम्मेदार कारकों में गरीबी भी शामिल है, पर इस पोषण संबंधी बीमारी की व्यापकता के लिए जलवायु और
आनुवांशिक कारक भी जिम्मेदार हो सकते हैं। तेलंगाना के शहरी बुजुर्गों में विटामिन-बी12 की कमी भी
एनीमिया का कारण बन रही है। इसी तरह, हुकवर्म और व्हिपवर्म का संक्रमण आंध्र प्रदेश में गंभीर एनीमिया के
रोगियों की बढ़ती संख्या के लिए जिम्मेदार है।
इस अध्ययन से जुड़े भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद के डिब्रूगढ़ स्थित क्षेत्रीय केंद्र के वैज्ञानिक डॉ.
कौस्तुभ बोरा ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि "यह अध्ययन महत्वपूर्ण है क्योंकि यह देश में गंभीर
एनीमिया की स्थिति का व्यापक वर्णन करता है, जिसमें हर राज्य और केंद्र शासित प्रदेश शामिल हैं। यह
बताता है कि एनीमिया से निपटने के लिए पिछले 10 वर्षों में किस तत्परता से काम किया गया है।"
लाल रक्त कोशिकाओं की विकृति के लिए जिम्मेदार सिकल-सेल एनिमिया और बीटा-थैलेसीमिया सिंड्रोम का
प्रकोप देश के अन्य हिस्सों की तुलना में उत्तर-पूर्व भारत में कम है। शोधकर्ताओं का कहना है कि मलेरिया के
प्रसार को बढ़ावा देने वाली जलवायु वाले राज्य हीमोग्लोबिन की कमी के प्रति संवेदनशील हो सकते हैं और
वहां एनीमिया से ग्रस्त लोगों की संख्या अधिक हो सकती है। यह अध्ययन शोध पत्रिका ट्रॉपिकल मेडिसिन ऐंड
इंटरनेशनल हेल्थ में प्रकाशित किया गया है।
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