कभी भी हम यह सोच कर कमजोर नहीं पड़ें कि हम अकेले हैं बल्कि यह सोच कर आगे बढ़ें कि हम अकेले ही काफ़ी हैं। पानी में कील ठोंकने से पानी रुकता नहीं.ऐसे ही बहुत सी बातें होती हैं जिन पर हमारा ज़रा भी वश नहीं चलता।
उन बातों को बोझ की तरह मन-मस्तिष्क में लाद कर चलने से जीवन भारी लगेगा इसलिए उन्हें यथास्थिति स्वीकार करके आगे बढ़ने में ही समझदारी है। नियति पर नियंत्रण संभव नहीं है लेकिन उसके प्रति अपनी सोच पर नियंत्रण किया जा सकता है
🌞 बुद्धि नाश कैसे होती है 🌞
मन का विषय क्या है ? मन के अनेक विषय हैं, अर्थात मन में अनेक इच्छाएं हैं, विचार हैं। मन में एक विचार उपजा, एक अभिलाषा जगी कि ऐसा होना चाहिए। अब वह विचार उमड़ घुमण कर मन को मथने लगा। अब उसके प्रति मन अनुराग, आसक्ति, आतुरता पैदा हुई।
उसके उपरांत मन में विचार आने लगे कि कैसे यह उपलब्ध होगा। एक ताना बाना बनने लगा। एक योजना बन गई मन में, उसका मानचित्र खिंच गया। अब उस योजना के कार्यान्वयन की बारी आई। अब उस योजना के कार्यान्वयन में जो जो भी आड़े आयेगा, जो जो बात नहीं मानी जायेगी, वह क्रोध को, असहमति को, नकार को जन्म देगी।
प्रारम्भ में तो आप दो चार बार समझाते हैं, थोड़ा बहुत आपकी समझ के अनुसार कार्यान्वयन होता भी है। परंतु ठीक उस मानचित्र के अनुसार नहीं, जैसा कि आपने अपने मन में रूप रेखा बना रखी है। धीरे धीरे क्रोध का बारूद एकत्रित होने लगा।
अब हम धीरे धीरे क्रोध से सम्मोहित होने लगे। अब धीरे धीरे प्रकृति हमारे ऊपर भारी पड़ने लगी, प्रकृति मालिक होने लगी। क्रोध में हम अपना विवेक खोने लगे, क्रोध ने हमें पूरी तरह अपने वश में ले लिया। हम भूल गए कि हम क्या करने वाले हैं, क्या कर रहे हैं। इसी को बुद्धिनाश कहा गया है। बुद्धि नाश के बाद क्या होगा? वही जो होता है? व्यक्ति क्रोध से फट पड़ता है और फिर बाद में सोचता है कि ऐसे कैसे हुआ !
सुप्रभातम सुमंगलम राम राघव राम राघव राम राघव रक्षमाम कृष्ण केशव कृष्ण केशव कृष्ण केशव पाहिमाम आपका हर पल मंगलमय हो और आनन्ददायक हो।